Thangalaan: मजदूरों के नर्क KGF की कहानी लेकर आ रहे चियान विक्रम! रॉकी भाई के एल-डोराडो से होगी बिल्कुल अलग

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Thangalaan: पिछले साल की सबसे बड़ी हिट फिल्मों में से एक ‘KGF चैप्टर 2’ में, रॉकी भाई बने यश का स्वैग सिनेमा फैन्स के खून में घुल चुका है। 2018 में शुरू हुई KGF की कहानी इंडियन सिनेमा के लिए एक यादगार मोमेंट रहेगा। इस कहानी का हीरो बने यश ने तो सबको दीवाना बनाया ही, मगर फिल्म में दिखा कोलार गोल्ड फील्ड्स का पूरा संसार अपने आप में बहुत अनोखा था।

KGF के फैन्स को याद होगा कि पहली फिल्म की कहानी में इंटरवल के बाद जब रॉकी खुद खदान में कदम रखता है, तो थिएटर्स का माहौल किस तरह बदल गया था। कच्ची झोंपड़ियों में रहते खस्ताहाल मजदूर और अंधेरे में डूबीं सीलन भरी खदानें जैसे चीखकर कह रही थीं कि उन्हें एक शानदार हीरो चाहिए जो कुछ रौशनी लाए। लेकिन अब एक नई फिल्म आ रही है ‘तंगलान’, (Thangalaan) जिसके हीरो तमिल स्टार चियान विक्रम हैं। रिपोर्ट्स बताती हैं कि इस फिल्म की कहानी भी सोने की उसी खदान पर है जिसे KGF के नाम से जाना जाता है। विक्रम के बर्थडे पर मेकर्स ने फिल्म की मेकिंग का एक वीडियो शेयर किया है जो बता रहा है कि ‘तंगलान’, यश की फिल्म से कितनी अलग है।

जहां यश की फिल्म कोलार गोल्ड फील्ड्स पर बेस्ड एक फिक्शन थी, वहीं ‘तंगलान’ (Thangalaan) रियल इतिहास के ज्यादा करीब है। KGF सिर्फ सोने की ही नहीं, कहानियों की भी खदान है। किसी समय भारत में निकले सोने का 95% सिर्फ कोलार से ही आता था। खदानों से निकला सोना, इसे पाने की दौड़ में लगे लोग, और इस दौड़ में मजदूरों की खामोश कुर्बानी, कोलार को लगभग किसी मिथक जैसा बना देती हैं। कोलार का इतिहास, वर्तमान और सोना क्यों एक स्क्रीन पर एक अद्भुत संसार रचता है इसका जवाब इतिहास में छुपा है। आइए बताते हैं कैसे…

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KGF यानी कोलर गोल्ड फील्ड्स, आज कर्नाटक के कोलार जिले में एक तहसील है। रिपोर्ट्स बताती हैं कि 1899 से 1924 के बीच कोलार फील्ड के ब्रिटिश सुपरइंटेंडेंट रहे फ्रेड गुडविल ने यहां का इतिहास जुटाया था। पश्चिम गैंग राजवंश ने दूसरी सदी में कोलार को खोजा था। अपने लगभग हजार साल के शासन में उन्होंने अपनी राजधानी को कोलार से बदलकर, आज के मैसूर में कर लिया। लेकिन वे अपने नाम के आगे एक टाइटल लगाते रहे जिसका मतलब था ‘कोलार के राजा’। अब ये सोचने वाली बात है कि इस जमीन में ऐसा क्या था जो इसके नाम से उन्होंने खुद की पहचान को जोड़े रखा!

रिपोर्ट्स बताती हैं कि कोलार में सोने का खनन करने की कोशिश, दसवीं सदी में चोल साम्राज्य के राज के दौरान भी होती रही। लेकिन बहुत छोटी-छोटी माइन्स बना कर, हाथों से ही सारा प्रोसेस होता था। यही कोलार 13वीं सदी में विजयनगर साम्राज्य का हिस्सा रहते हुए, 16वीं-17वीं सदी में मराठाओं और हैदराबाद के निजाम के हिस्से में रहा। और आखिरकार ब्रिटिश कंट्रोल में आ गया।

4 पन्ने की एक रिपोर्ट और कोलार का नया इतिहास

ब्रिटिश आर्मी के लेफ्टिनेंट जॉन वॉरेन ने अपनी एक रिपोर्ट में लिखा कि कोलार के सोने से उसका पाला पहली बार 1799 में पड़ा। युद्ध में टीपू सुल्तान के निधन के बाद अंग्रेजों ने सारा राज्य मैसूर के महाराज को वापिस सौंप दिया, लेकिन कोलार की जमीन पर सर्वे करने का अधिकार अपने पास रख लिया था। 1804 में एशियाटिक जर्नल में छपी रिपोर्ट में वॉरेन ने लिखा कि उसने कोलार के लोकल लोगों से, चोल शासन के दौरान हाथों से सोना निकाले जाने की कहानियां सुनी थीं। इन अफवाहों के आधार पर उसने एक घोषणा करवाई कि जो कोई उसे सोना निकालकर दिखाएगा, उसे ईनाम दिया जाएगा।

इस ईनाम के लालच में आसपास के गांवों के लोग बैलगाड़ी में खुदाई की हुई मिट्टी लेकर पहुंचे, और उसमें से गोल्ड पाउडर निकालकर वॉरेन को दिखा दिया। एक जांच के बाद वॉरेन ने नतीजा निकाला कि गांव वालों के देसी तरीकों से, 56 किलो मिट्टी से लगभग एक दाने भर सोना निकाला जा सकता है। तो प्रोफेशनल माइनिंग से कितना निकल सकता है! इस रिपोर्ट के आधार पर 1804 से 1860 तक कोलार में सोने की खोज में कई स्टडी और खुदाइयां हुईं, मगर सारी मेहनत नाकाम रही।

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एक रिटायर्ड खिलाड़ी की नई पारी

बैंगलोर कैंटोनमेंट में बैठे, रिटायर्ड ब्रिटिश सोल्जर माइकल फिट्ज़गेराल्ड लवेल ने 1871 में वॉरेन की रिपोर्ट पढ़ी। लवेल एक नए आईडिया से एक्साइटेड था और बैलगाड़ी से ही, ऑलमोस्ट 100 किलोमीटर दूर कोलार के ट्रिप पर चल पड़ा। उसने सोने की माइनिंग के लिए कुछ लोकेशंस फाइनल कीं। लवेल कामयाब हुआ और उसे सोने का बड़ा हिंट मिला। दो साल रिसर्च के बाद उसने मैसूर महाराज की सरकार से माइनिंग का लाइसेंस मांगा। उसे जवाब मिला कि सोने की खोज व्यर्थ है और सिर्फ कोयले की माइनिंग के लिए इजाजत दे दी गई।

लवेल अब रुकने वाला नहीं था और उसने कहा कि अगर वो सोने की खोज में कामयाब हुआ तो इसमें सरकार का बहुत फायदा होगा। लेकिन नाकामयाब हुआ तो कुछ नुक्सान नहीं होगा क्योंकि उसे सिर्फ माइनिंग का अधिकार चाहिए, बाकि सब वो खुद कर लेगा। 1875 में लवेल को 20 साल के लिए लाइसेंस तो मिल गया, लेकिन वो इतना रईस नहीं था कि माइनिंग का पूरा कारोबार खुद फंड कर सके।

दो साल बाद उसने कई ब्रिटिश ऑफिसर्स के साथ ‘द कोलार कंसेशनरीज’ नाम का एक सिंडिकेट बनाया और इस कंपनी ने दुनिया भर के इंजिनियर्स की मदद लेनी शुरू कर दी। लेकिन माइनिंग से अच्छा प्रोडक्शन करने के लिए एक बेहतर तकनीक की जरूरत थी और सिंडिकेट पर उन लोगों का दबाव भी था जिन्होंने अपने पैसे लगाए थे। यहां से सीन में एंट्री हुई इंग्लैंड की कंपनी जॉन टेलर एंड सन्स की, जो माइनिंग के एक्सपर्ट थे। और तब शुरू हुआ कोलार का गोल्डन पीरियड!

जब KGF में माइनिंग ऑपरेशन बढ़ा तो अंग्रेजों ने कावेरी पर हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर प्लांट लगाने के लिए मैसूर महाराज को अप्रोच किया। एशिया का दूसरा और इंडिया का पहला पावर प्लांट कोलार में लगा और 1902 में यहां 24 घंटे बिजली रहने लगी। मगर अंग्रेजों के इस पूरे सुनहरे सपने की एक डार्क साइड भी थी। रिपोर्ट्स बताती हैं कि KGF करीब 121 साल अंग्रेजों के हाथों में रहा। इस दौरान यहां से करीब 900 टन यानी 9 लाख किलो सोना निकाला गया। जब माइनिंग जोर पर थी तब एक समय पर KGF में करीब 30 हजार मजदूर थे। और अंग्रेजों के माइनिंग ऑपरेशन के दौरान यहां करीब 6000 मजदूरों ने अपनी जान गंवा दी!

कोलार का सोना और ‘तंगलान’ की कहानी का कनेक्शन

रिपोर्ट्स बताती हैं कि अंग्रेजों के राज में जब कोलार में सोने की खोज की दौड़ शुरू हुई, तो कन्नड़ लोगों के इस इलाके में तमिल मजदूरों का आना भी शुरू हुआ। गहरी खदानों के अंदर उमस और गर्मी भरी शाफ्ट में काम करना लोगों को बीमार तो करता ही था, आए दिन एक्सीडेंट भी होते थे। और खदानों में आए विदेशी मजदूरों के मुकाबले, भारतीय मजदूरों को इस काम के बदले मजदूरी और सुविधाएं बहुत कम मिलती थीं। इस वजह से कोलार के लोकल गांवों के कन्नड़-भाषी लोगों ने काम करने से इनकार करना शुरू कर दिया। तमिलनाडु के धर्मपुरी, कृष्णागिरी, सालेम जैसे जिलों से तमिल मजदूर आकर कोलार में बसने लगे।

चियान विक्रम की फिल्म ‘तंगलान’ (Thangalaan) इसी माहौल पर आधारित है। ‘तंगलान’ का मतलब होता है गांवों का रखवाला। रिपोर्ट्स बताती हैं कि फिल्म में ‘तंगलान’ विक्रम के किरदार को कहा जा रहा है। वो एक कबीलाई लीडर जैसे लग रहे हैं जो अपने लोगों के लिए कुछ भी कर सकते हैं। कुछ महीने पहले आया फिल्म का टीजर और अब मेकिंग का वीडियो इशारा कर रहे हैं कि फिल्म में जमीन या हक के लिए लड़ाई जैसा सीन हो सकता है।

डायरेक्टर पा रंजीत ने ‘तंगलान’ (Thangalaan) की स्क्रिप्ट पर करीब 4 साल काम किया है। ‘सारपट्टा परम्बरै’ और ‘काला’ जैसी फिल्में बनाने वाले पा रंजीत, अपनी फिल्मों में जातिवाद से होने वाले कनफ्लिक्ट दिखाने के लिए जाने जाते हैं। कोलार में काम करने वाले तमिल मजदूरों का कुछ पिछड़ी/अल्पसंख्यक जातियों या समुदायों से होना भी कहानी का एक एंगल हो सकता है। अगर ऐसा कुछ कनफ्लिक्ट फिल्म में हुआ तो यकीनन ये कहानी को और मजबूत बनाएगा।

रॉकी भाई के पैदा होने से भी सालों पुरानी कहानी

‘तंगलान’ (Thangalaan) का पूरा फील और लुक, यश की फिल्म KGF से बहुत अलग है। फिल्म की कहानी उस पीरियड में सेट है जब कोलर पर अंग्रेजों का राज था। KGF की कहानी में खदान में सोना मिलने और रॉकी भाई के पैदा होने का साल 1951 था। जबकि कहानी का मुख्य हिस्सा रॉकी के जवान होने के वक्त यानी 1970-80 के दशक का है। यानी ‘तंगलान’ की कहानी, रॉकी भाई की कहानी से 70-80 साल पीछे तो आराम से होगा।

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